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इंडिया और भारत के बीच का फर्क दिखा रहे हैं ये प्रवासी मज़दूर
प्रवासी मज़दूर पिछले 40 दिनों से भी ज़्यादा वक़्त से पैदल चल कर भूखे प्यासे अपने गांव अपनी धरती में वापस जाने के प्रयास में लगे हैं, मज़दूरों का पैदल चलना लोकतंत्र में उनके लिए बने अधिकारों से बेदखल कर दिए जाने की कार्यवाही के जैसा है।
- Opinion
- Posted by Sumit Sharma
- May 12, 2020 09:31 IST

मैं एक पत्रकार हूँ, और इंडिया(शहर) में हूँ, अब तक मैंने अपने देश को इंडिया (शहरों) या भारत (गांव) ही समझा था, लेकिन अब मुझे समझ आया हैं की हमारा देश हमारे देशवासियों के हालातों के लिहाज से 2 हिस्सों में बंटा हुआ हैं एक हैं भारत (गांव) और दूसरा हैं इंडिया (शहरों) , मैंने मेरे देश के भारत वाले हिस्से को इतिहास और पुरानी किताबों में बहुत पढ़ा था, मुझे मेरे घर के बुजुर्गो ने जिन्होंने 1947 की त्रासदी या पलायन देखा था तब के भारत की कहानी भी बहुत सुनाई थी, लेकिन एक पत्रकार बनने के बाद मैंने अपने ही देश में इंडिया और भारत का फर्क इतनी करीब से कभी नहीं समझा था, वैसे मुझे नहीं लगता ये किसी भी लिहाज से मेरा सौभाग्य हैं ! ये न मेरा सौभाग्य हैं, न मेरे मुल्क इंडिया और भारत में रहने वाले नागरिकों का !
देश इस वक़्त कोरोना महामारी के विश्व्यापी संकट से जूझ रहा हैं, मीडिया की भाषा में बोलू तो आजकल रनडाउन बहुत हेक्टिक रहता हैं, मतलब काम बहुत ज़्यादा हैं, रात को सोने से पहले कोरोना वायरस के बढ़ते नंबर देख कर दिल सिहर जाता हैं, और सुबह उठो तो ऐसी खबरों का सामना करना पड़ता हैं जो बार-बार हर बार मुझे भारत और इंडिया के बीच का फर्क दिखाती हैं, लेकिन मुझे हैरानी तब होती हैं जब मैं इन्हीं भारत के लोगों की भूमिका आज के इंडिया को बनाने में देखता हूँ तो इनकी भागीदारी और इनके परिश्रम की कोई सीमा नहीं हैं, खैर आप अगर अभी भी मेरी बात को नहीं समझे तो अब समझिये मैं बात कर रहा हूँ हमारे देश के उन प्रवासी मज़दूरों की जिनके बारे में सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ चैनल पर सुनकर-सुनकर अब आप इर्रिटेट हो गए होंगे !
देश में या कहु कि इंडिया(शहरों) से भारत (गांव) की और वापस जाते ये प्रवासी मज़दूर पिछले 40 दिनों से भी ज़्यादा वक़्त से पैदल चल कर भूखे प्यासे अपने गांव अपनी धरती पर वापस जाने के प्रयास में लगे हैं, मज़दूरों का पैदल चलना लोकतंत्र में उनके लिए बने अधिकारों से बेदखल कर दिए जाने की कार्यवाही के जैसा है। इन मज़दूरों का यूँ पैदल चलना न सिर्फ इनको ये बता रहा हैं की जिस भारत को इंडिया(शहरों) बनाने के सफर में इन्होंने अपना जीवन खपाया है उस इंडिया(शहरों) में ये कहीं एडजस्ट नहीं होते, बल्कि इनका यूँ पैदल चलने को मज़बूर होना हमारी डेमोक्रेसी में उनके लिए बने हक़ों से बेदखल कर दिए जाने का जीवंत उदाहरण है। मेरी नज़र में ये लोग ये जान गए हैं कि जिन खाली पड़े मैदानों में इन्होंने मेहनत करके बड़ी आलीशान इमारते बनाकर शहरों को शहर, नगर और उपनगर बनाये वहां के समाज से बराबरी का कोई हक़ इनके पास नहीं हैं, इन शहरों में उन मंत्रियो, संतरियों और प्रधान सेवकों की इनके प्रति कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं हैं, जिनके राजनीतिक इतिहास में इन असहायो न जाने कितनी बार नेताओं की तस्वीरें इनकी पार्टी के झंडे उठाये होंगे !
ये मज़दूर अकेले नहीं हैं, इनके साथ हमारे इंडिया (शहरों) के स्लोगन की सबसे दमदार किरदार निभाने वाली इनकी महिलाएं भी हैं, कुछ मज़दूरों की औरते गर्भवती हैं, लेकिन वो सोनीपत से मध्यप्रदेश तक पैदल कई हज़ार किलोमीटर की यात्रा करती चली जा रही हैं , आप यकींन मानिये इन दृश्यों ने जिन्हे आप रोज़ टीवी अख़बार या सोशल मीडिया पर देख रहे हैं, हमारे नगरों और महानगरों की मॉडर्न सोच की असंवेदनशीलता का टॉप ट्रेंड दिखा दिया हैं !
लेकिन आप कुछ मत सोचिये आप बस ये देखिये की सोशल मीडिया का ट्रेंडिंग एजेंडा आज क्या हैं, कैसे मुल्क में हिन्दू- मुस्लमान जैसे मुद्दे को गरम रखा जाए, और कैसे ताली-थाली बजाकर, इन मज़दूरों के सवालों को और ट्रैन के नीचे आने पर इनकी आत्मा से निकली चीखों को बेमौसम दिवाली के पटाखों के शोर में कहीं गुम कर दिया जाए , आप इंडियंस (शहरी) ट्विटर, इंस्टाग्राम पर हज़ारो लाखों, मिलियंस वाले लोग ये देखिये की किस बॉलीवुड एक्टर की नातिन ने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करके एक असाधारण इतिहास रच दिया हैं, आप देखिये की आपके आसपास पुष्प वर्षा कहा हो रही हैं ये बेहद जरूरी, देखिये कहा अख़बार की कवर स्टोरी में आपका नेता फिर बाज़ी मार ले गया, अगर इन मज़दूरों के लिए कुछ याद रखना हैं तो ये याद रखिये आप और मैं जो आज के इंडिया(शहरों) का हिस्सा हैं, हम अंदर से कितने मर चुके हैं, अपने ही लोगों की तकलीफ और उनके जीते जागते हालातों को लेकर हमारा रवैया एक्सपोज़ हो चुका हैं, हम सच में अपने भारत को इंडिया बनाने की दौड़ में बहुत दूर आ चुके हैं, और शायद ही कभी लौट पाए !
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